Thursday, January 17, 2013

म्हारी छाती हुई नहीं भारी

बाबला योह केसो सम्मान दिखायो 
लपेट सफ़ेद सूती में गोदी उठायो 
और घर आते ही लक्ष्मी ने
परायो धन बतायो 

मायेड़ी योह केसो लालन पालन दिखायो
भाया न लोटो भर दूध पिलायो
मने छेटांक छाछ चखायो
और बचेडी रोटी खिलायो

सारा दिन गाँव गली में फिरतो फिर
भायेड़ो डांगर नेह भी ना चरायो
माँ फिर भी तू लाढ दिखायो
मने बोली जा पिछवाड़े में गोबर थाप
चुल्हो जलाने के साधन कम हो आयो

बाबोसा न रोटी पुरसुं, दादोजी का पैर दबाऊं
जानवरां न पानी कुत्तर घाल, भारी गठरी खेत से ले आऊं
पर सून
मायेड़ी म्हारी छाती हुई नहीं भारी हाल
मने पराये घर मत धकाल

माँ बोली तू किस्मत आली
बापूसा ने बड़ो दिल दिखायो
तने जन्मता ही लाडू ना खिलायो
न दो नास्यां में रुई सुन्घायो

मैं लूँ घुंघटा में घुटती सांस
माच्चा पर बिछ जाऊं, दर्द दांता निच दबाऊं
फिर सिकुड़ के सो जाऊं
और पोह फटने से पेहली फिर खड़ी हो जाऊं

बापूसा खड्या द्वार
मन करयो भागर जाऊं, सारो दुःख सुनाऊ
पर बैठक बेठा सगा सम्भंधी
रित रिवाज़ समझी बढ़ता कदम पर लगाम लगायो

देवरियो पानी लेगो बोल्यो बापू नेह
तपती धुप में आया हो थोड़ो गलो भिजाओ
हाथ जोड़ के बापू बोल्यो
मालकां क्यूँ पाप चढाओ
बेटी के घर को अन्न-पानी क्यूँ खुवाओ

बाबुल क्यूँ म्हारे पर तरश खायो
क्यूँ ना जन्मता ही लाडू खिलायो, रुई सुन्घायो
रेहती मह दफनाई धरती में थारे कन
आज परायी धरती में मने
इतनो परायो क्यूँ महसूस करायो